हृदय

हृदय

हम हदय को छूट देते
बेहिसाब,बेशुमार और न जाने कितना
पर जब हरबार तूटने देते
उससे ठीक पहले हम क्यों
हृदय को इतनी हवा दे चूके
हम उसे पंछी समझने चले
जो जैसे चाहे झूम ले, झूला हो

हम यह मान ले किसी के प्रति
बेइंतेहा उल्फत हो और लाख
कोशिशों के बावजूद दोनों एक है
किंतु बहूत दूरी है सदा के लिए

इस हृदय को क्या पता होगा
उल्फत तो समर्पण का समुंदर है.
जाने कैसे हृदय इतना सहे
इतनी तकलीफ होकर आह न करे

हृदय की गर बहते एहसास हो
जिसे तुमने मन की आंखो से जाना
तो "हृदय" ही गहरी नज्म़ जो हमेशा पास
कभी भी कोई इसे फाड़ेगा नहीं, शीशों की तरह तोड़ेगा नहीं
वो जो इसे मिटाना चाहे, हमेशा
इसे रूह में सांसों की पनाह देगा
मेरा यकीन मानो... तुम !
ये "हृदय" ही तुम्हें यादों से ज्यादा संवारेगा
भलेही उनकी *उल्फत* न मिले
पर नज्म हुए हमेशा _*साथ*_ रहेगा

प्रियांका - स्पंदन‌ पियाचे 🌿

Published by प्रतिबिंबित मन

accountant. love to write. writing name is spandan piyaache. i'm malwani girl with little dreams ahead

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