तेरा साथ

पिघल जाया करते है दिल 
शाम के धीमे किरनों में
जब तुझे देखने की चाहत
दिनबदिन बढ़ती रहती है

खामीयों की भरमार बहुत है
पर उनके इठलाने, मनाने की
तमन्नाए आज क्यू लगती अपनी
जैसे कोई छूट गया मन में

आदतें बस, लगती रही गोंद की तरह
मगर कुछ धूप से ज्यादा चोंट देती
कभी पीछे मूड़कर उसकी सलाह
मानने में हर्ज क्या है, खयाल न आया

सालों से तलाश थी, इसी उमीद में
के अब वो आवाज़ हम सून ले
महसूस करे उस के प्यारे जज्बातों को
या मुहब्बत की रूठी बागों को खिलते हुए

प्रियांका - स्पंदन पियाचे



Published by प्रतिबिंबित मन

accountant. love to write. writing name is spandan piyaache. i'm malwani girl with little dreams ahead

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